प्रणव-ध्यानयोग
नमस्कार दोस्तों आज हम सीखेंगे बहुत ही आसान और बहुत ही फायेदेमंद, ध्यानयोग करने के तरीके और इसके फायेदे के बारे में, जो की आपके मन मस्तिस्क को स्वस्थ और हमेशां खुशनुमा रखता है | तथा आपके मन को नियंत्रण करता है | जिससे की आपका सोच सही दिशा में रहे और आपका मन में हमेसा POSITIVE ENERGY का प्रवाह बना रहे | और आप किसी भी अवस्था में अपना धैर्य न खोये और धीर गंभीर बने रहे |
विधि: सबसे पहले आप ध्यान मुद्रा में बैठ जाये,
शरीर को सीधा रखे, आँखों को बन्द करे और लम्बी एवं धीमी गति से श्वास को लेते एवं
छोड़ते रहे, गति इतनी
धीमी होनी चाहिए की स्वयं को भी श्वास की ध्वनि की अनुभूति न हो, अब अपने श्वास पर
मन को केन्द्रित कर देते है, तो प्राण स्वतः सूछ्म हो जाता है ओर 10 से 20 सेकंड
में एक बार श्वास अन्दर जाता है और उतनी ही देर में श्वास बहार निकलता है | लम्बे
अभ्यास से योगी का 1MIN में एक ही श्वास चलने लग जाता है |
धीरे-धीरे
अभ्यास बढाकर प्रयास करे की 1MIN में एक श्वास तथा एक प्रस्वास चले |
यह पूरी तरह
से ध्यानात्मक है | समाधि के अभ्यासी योगी साधक प्रणव के साथ स्वासों की इस साधना
को समय को उपलब्धता के अनुसार घंटो तक भी करते है | इस प्रक्रिया में श्वास से
किसी तरह की ध्वनि नहीं होती अर्थात यह ध्वनिरहित साधना साधक को भीतर के गहन मोन
में ले जाती है, जहाँ साधक
की इन्द्रियों का मन में, मन का प्राण में, प्राण का आत्मा में और आत्मा का विश्वात्मा अथवा परमात्मा
में लय हो जाता है |
लाभ:
1.इससे मन
अत्यन्त एकाग्र तथा स्थिर होता है | उतम साधक ध्यान करते-करते सच्चिदानंद-स्वरूप
ब्रम्हा के स्वरूप में एकरूप होता हुआ समाधि के अनुपम दिव्य आनन्द को भी प्राप्त
कर लेता है |
2.इस
प्राणायाम से लगातार अभ्यासयोग से धारणा, ध्यान एवं समाधि के सयोंग से ‘संयम’
प्राप्त होता है |
3.जीवन तनावरहित
होकर मन प्रसन्न रहता है, नकारात्मकता दूर होती है | POSITIVE ENERGY का प्रवाह होता है, जीवन सफल बन जाता है |
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